भातखंडे में चार दिवसीय संगीत समारोह का ‘अन्नपूर्णेश्वरी’…
भातखंडे में गूंजा मूर्छना, अलंकार, सपाट तान, कृंतन और राग यमन…
लखनऊ : कार्यशाला में सरोद, बांसुरी और सितार वादन की बारीकियों से संगीतज्ञों ने स्टूडेंट्स को रूबरू कराया। गायन और वादन की परंपराओं पर गुरु-शिष्यों ने चर्चा की। मैहर घराने की परंपरा गायन शैली और उसकी यात्रा पर स्टूडेंट्स के सवालों के गुरुओं ने जवाब दिए। शुक्रवार को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय त्रिसामा आर्ट्स और अन्नपूर्णा देवी फाउंडेशन के विवि परिसर में चल रहे चार दिवसीय संगीत समारोह ‘अन्नपूर्णेश्वरी’का दूसरा दिन था। अन्नपूर्णेश्वरी, सेनिया-मैहर घराने के संस्थापक आचार्य बाबा अलाउद्दीन ख़ान और उनकी सुपुत्री अन्नपूर्णा देवी को समर्पित एक शास्त्रीय संगीत का महोत्सव है। जिसमें मैहर घराने से संबंधित एक फोटो प्रदर्शनी, तीन दिवसीय संगीत की कार्यशाला, आचार्य अलाउद्दीन ख़ान से संबंधित प्रदर्शनी और मैहर घराने के वरिष्ठ कलाकारों की संगीत प्रस्तुतियां हैं। शुक्रवार को पद्मभूषण अन्नपूर्णा देवी के शिष्य पं नित्यानन्द हल्दीपुर ने बांसुरी, पं बसन्त काबरा ने सरोद और विदुषी संध्या आप्टे ने सितार पर कार्यशाला की। कार्यशाला संयोजक प्रो सीमा भारद्वाज ने बताया कि पं नित्यानन्द हल्दीपुर ने बांसुरी का उद्भव, शास्त्रीय संगीत के प्रारंभिक विषय जैसे मूर्छना, अलंक़ार, सपाट की तान आदि सिखलाई। गुरुओं ने स्टूडेंट्स को स्वर अलाप, मैहर घराने का ध्रुपद बाज का प्रारंभिक स्वरूप भी बताया। पं बसंत काबरा ने राग भैरवी में अलंकार और राग विस्तार बताया। संध्या ने सितार पर मूर्छना , अलंकार, सपाट तान, कृंतन और राग यमन में विस्तार से बताया।