आज की ताजा ख़बरें :

भारत में पहली बार 25 सप्ताह में जन्मीं त्रिदेवी’ नवजात बालिकाएं सकुशल घर पहुंचीं – जन्म के समय मात्र 50% जीवित रहने की संभावना थी, अमृता अस्पताल ने 225 दिनों की गहन देखभाल के बाद बिना किसी जटिलता के सुनिश्चित की स्वस्थ वापसी

~ तीनों नवजातों ने 225 दिन निसु में बिताए, इस दौरान कोई संक्रमण या मस्तिष्क संबंधी समस्या नहीं हुई
~ जन्म के समय प्रत्येक बच्ची का वजन लगभग 800 ग्राम था

राष्ट्रीय, 10 अप्रैल 2025: जन्म के समय इन तीनों नवजात बच्चियों का कुल वजन एक सामान्य पूर्णकालिक शिशु से भी कम था। अमृता अस्पताल, फरीदाबाद ने भारत में नवजात देखभाल के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए, मात्र 5.5 माह की गर्भावस्था में जन्मीं तीन नवजात बालिकाओं को सफलतापूर्वक अस्पताल से छुट्टी दे दी दी है। इन नवजातों का कुल वजन केवल 2.5 किलोग्राम था और ये जन्म के बाद लंबे समय तक निसु में गहन निगरानी में रहीं।

अस्पताल की विशेषज्ञ टीम ने 225 दिनों तक इन तीनों शिशुओं की उच्च जोखिम वाली देखभाल की, और यह सुनिश्चित किया कि इस दौरान किसी भी तरह की चिकित्सकीय जटिलता न हो- न तो कोई अस्पताल में हुआ संक्रमण, न ही मस्तिष्क में रक्तस्राव, और न ही कोई दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्या। यह भारत में अपनी तरह का पहला दर्ज मामला है, जब इतनी कम अवधि में जन्मे और इतने कम वजन वाले तीन नवजात जीवित रह सके हों।

गर्भावस्था की शुरुआत से ही यह मामला असाधारण था। मां, जो कि एक 46 वर्षीय विश्वविद्यालय प्रोफेसर हैं, ने दीर्घकालीन गर्भधारण की चुनौती के बाद प्राकृतिक रूप से तीन नवजातों को गर्भधारण किया और तीसरी तिमाही तक सफलतापूर्वक ले गईं। अंतिम हफ्तों में मां की तबीयत कई संक्रमणों के कारण बिगड़ने लगी और उन्हें भी गहन चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता पड़ी। नवजातों का जन्म क्रमशः 900 ग्राम, 800 ग्राम और 800 ग्राम के वजन के साथ हुआ यह सभी वजन भारत में जीवित रहने की सामान्य सीमा से काफी नीचे माने जाते हैं।

भारत में 25 सप्ताह पर जन्मे किसी भी एकल बच्चे के जीवित रहने की संभावना लगभग 50% मानी जाती है, जबकि इतनी कम कुल वजन के साथ तीन नवजातों का जीवित रहना असंभव ही समझा जाता है।
फिर भी, इन तीनों शिशुओं की चिकित्सकीय यात्रा उल्लेखनीय रूप से स्थिर रही। वरिष्ठ नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. हेमंत शर्मा के नेतृत्व में छह डॉक्टरों और लगभग 20 निसु नर्सों की समर्पित टीम ने लगातार शिफ्टों में काम करते हुए इन नवजातों को व्यक्तिगत और निरंतर देखभाल प्रदान की। उल्लेखनीय रूप से, इनमें से किसी भी शिशु को यांत्रिक वेंटिलेशन की आवश्यकता नहीं पड़ी – जो इस उम्र में एक असाधारण बात है। केवल एक शिशु को सतही सर्फेक्टेंट की एक खुराक और एक रक्त आधान दिया गया। सभी तीनों शिशुओं को जन्म के नौ घंटे के भीतर आहार देना शुरू कर दिया गया था और चौथे दिन तक वे पूरी तरह से मां के दूध पर आ गए जो कि अंतरराष्ट्रीय मानकों से भी तेज़ है। पूरे 225 दिनों की देखभाल के दौरान, तीनों नवजातों को किसी भी प्रकार का अस्पतालजनित संक्रमण नहीं हुआ और न ही मस्तिष्क में रक्तस्राव पाया गया।

डॉ. हेमंत शर्मा, वरिष्ठ नियोनेटोलॉजिस्ट, अमृता अस्पताल, ने कहा, “ये तीन बेहद नन्हीं जानें थीं, जिन्हें हमारी टीम स्नेहपूर्वक ‘त्रिदेवी’ कहकर बुलाती थी। जन्म के समय इनका आकार और उम्र दोनों ही उम्मीद से बहुत कम थे। लेकिन फर्क यह पड़ा कि हमने बुनियादी देखभाल को बहुत गंभीरता से लिया – गैर-आक्रामक समर्थन, समय पर मां का दूध देना, और सतत् निगरानी। हमारी पूरी टीम प्रत्येक दिन इनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रतिबद्ध रही।”

हालांकि मां को प्रसवोत्तर निमोनिया और अन्य जटिलताओं के चलते आईसीयू में भर्ती होना पड़ा, फिर भी उन्होंने नवजातों को मां का दूध उपलब्ध कराने का प्रयास जारी रखा जो इनकी पोषण संबंधी सफलता और प्रतिरक्षा का प्रमुख आधार रहा। आवश्यकता पड़ने पर डोनर मिल्क का भी सहारा लिया गया, जो यह दर्शाता है कि भारत में ह्यूमन मिल्क बैंकिंग की व्यवस्था को और मजबूत बनाने की कितनी आवश्यकता है।

46 वर्षीय मां, ज्योत्स्ना ने कहा, “मैं अमृता अस्पताल की पूरी टीम की अत्यंत आभारी हूं। मेरी बेटियों के जन्म के साथ ही मुझे यह विश्वास हो गया था कि वे सुरक्षित हाथों में हैं। डॉक्टरों और नर्सों ने न केवल अपने कौशल का परिचय दिया, बल्कि अपनी करुणा से भी हमें संबल दिया। जब मैं खुद बीमार थी, तब भी उन्होंने मुझे मेरे बच्चों से जुड़े रहने में मदद की, दूध निकालते रहने के लिए प्रोत्साहित किया, और हर कदम पर हमारा साथ दिया। हम बस आभार व्यक्त कर सकते हैं कि तीनों बेटियां अब स्वस्थ हैं और घर पर हैं।”

भारत में हर साल 35 लाख से अधिक समय से पूर्व बच्चे जन्म लेते हैं और पांच वर्ष की आयु से पहले 3 लाख बच्चों की मृत्यु हो जाती है। ऐसे में यह मामला एक आशा की किरण के रूप में सामने आया है, जो यह दर्शाता है कि प्रमाण आधारित, सुव्यवस्थित नियोनेटल देखभाल किस प्रकार चमत्कारी परिणाम दे सकती है। भारत सरकार द्वारा नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए लागू किए गए इंडिया नेव्बोर्ण एक्शन प्लान और एस डी जी 3.2 के तहत यह उपलब्धि यह संदेश देती है कि समय पर पोषण, विशेषज्ञ नर्सिंग, ह्यूमन मिल्क बैंकिंग तक पहुंच और बहुआयामी देखभाल पद्धतियों को अपनाकर, हम और अधिक समय से पूर्व जन्मे बच्चों को स्वस्थ जीवन दे सकते हैं।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *