गांव की सामाजिक राजनीति पर आधारित है मदारीपुर जंक्शन…
लखनऊ: बालेन्दु द्विवेदी के लेखन व चन्द्रभाष सिंह के परिकल्पना व निर्देशन में नाटक मदारीपुर जक्शंन का मंचन संगीत नाटक अकादमी के संत गाडगे प्रेक्षागृह में किया गया।
नाटक मदारीपुर जंक्शन गांव की सामाजिक राजनीति पर आधारित है। मदारीपुर गांव उत्तर प्रदेश के नक्शे में ढूंढे तो यह शायद आपको कही नही मिलेगा लेकिन निश्चित रूप से यहा हजारों लाखों गांव से ली गयी विश्वसनीय छवियों से बना एक बड़ा गांव है। मदारीपुर में रहने वाले छोटे बड़े लोग अपने गांव को अपनी संपूर्ण दुनिया मानते हैं, इसी सोच के कारण यह गांव संकोच कर गया और करवा होते.होते रह गया। मदारीपुर में सभी बिरादरी के लोग पाए जाते हैं फिर भी गांव में ब्राह्मणों का बाहुल्य है जिनके निवास स्थान को सभी लोग अपनी देसी भाषा में पट्टी कहते हैं पट्टी के लोग एक से बढ़कर एक तीरंदाज मगजमार, हेकड़ीबाज है। पट्टियाँ कई उप पट्टियों में बटी हुई है। चवन्नी पट्टी, अठन्नी पट्टी, दुबन्नी पट्टी, भुरकुस पट्टी और न जाने क्या क्या संभवत किसी जमाने में यह बंटवारा भूमि पर उनकी हैसियत के मुताबिक किया गया होगा, पर अब उनके लिए यह केवल एक दूसरे को नीचा दिखाने का माध्यम भर बनकर रह गया है अठन्नी वाले अपने को श्रेष्ठ बताते हैं और पयन्नी वाले अपने को बाकी पट्टी वाले अवसर के हिसाब से दोनों में से किसी के साथ चिपक कर संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं पट्टियों के चारों ओर झोपड़िया है जिनमें तथाकथित निचली जातियों के पिछड़े लोग रहते है। जिन्हें पट्टी के लोग अपने हिसाब से चलाते है और उनका शोषण करते हैं। गांव में चवन्नी पट्टी के छेदी बाबू और अठन्नी पट्टी के वैरागी बाबू का इतना जलवा है उनके सामने निचली जाति के लोग सर तक नहीं उठा सकते।
छेदी बाबू और बैरागी बाबू एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, यहां तक कि किसी की जान भी ले सकते हैं । जब गांव में प्रधानी का माहौल आता है तो इन दोनों में कलह मच जाती है । प्रधानी का चुनाव जीतने के लिए दोनों अपने-अपने दांव चलते हैं और एक दूसरे को हराने के लिए वोट काटने के लिए अन्य प्रत्याशी भी खड़े करते हैं। इधर निचली जाति के लोगों में अपने अधिकारों के लिए धीरे-धीरे जागरूकता बढ़ रही है। जागरूकता और समझ बढ़ने के साथ ही निचली जाति के लोग भी अपना एक प्रत्याशी मैदान पर उतारते हैं। निचली जाति के प्रत्याशी को प्रधानी का चुनाव जीतते देख उसे रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र करके उसे मरवा देते हैं। इतना होने के बाद भी निचली जाति के लोग हार नही मानते और मृतक की पत्नी मेघिया का प्रधानी का चुनाव लड़वाते हैं, और अंतत: मेघिया प्रधानी जीत जाती है। अंत में नाटक यह सीख देकर जाता है कि हमें अपने अधिकारों के लिए स्वयं लड़ना होगा, दूसरे पर निर्भर रहकर हम कभी अपना भला नही कर सकते। नाटक में अहम भूमिका जूही कुमारी, निहारिका कश्यप, नीलम श्रीवास्तव, अनामिका रावत, प्रियांशी, कंचन, चन्द्रभाष, प्रणव श्रीवास्तव, सुन्दरम मिश्रा आदि ने निभायी।