रामदेव-पतंजलि केस: एक अजब खेल

नई दिल्ली: पतंजलि आयुर्वेद और उसके संस्थापक, योग गुरु बाबा रामदेव, के बीच हुए विज्ञापन के केस में तनाव बढ़ता ही जा रहा है। यह कहना होगा कि इस केस ने एक तरफ से सार्वजनिक क्षेत्र में विज्ञापनों के प्रभाव पर चिंता उत्पन्न की है, तो दूसरी ओर यह एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा भी बन चुका है।

कोरोना महामारी के दौरान, पतंजलि ने ‘कोरोनिल’ का ऐलान किया, जिसका दावा किया गया कि इसका सेवन करने से कोरोना ठीक हो जाएगा। इसके बाद, विज्ञापनों के माध्यम से इसकी प्रमोशन की गई, जिसने लोगों में उम्मीद और आत्मविश्वास भरा।

लेकिन इसके साथ ही, इस दावे की प्रमाणितता पर भी सवाल उठे। अन्य चिकित्सा संस्थानों ने इसे स्वीकृति नहीं दी, जिससे एक विवाद उत्पन्न हुआ। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी पतंजलि को फटकारा दिया और विज्ञापनों की सत्यता पर सवाल उठाया।

अब यह केस नए मोड़ पर जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सुनवाई में पतंजलि को अवमानना नोटिस के जवाब में माफी मांगने का आदेश दिया था, लेकिन रामदेव और पतंजलि के प्रतिनिधि ने इसे नकार दिया।

अब इस मामले में अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि पतंजलि को अवमानना नोटिस के जवाब में प्रिंट मीडिया में छपे गए विज्ञापन की सटीक जांच कराएगा।

यह केस न केवल एक चिकित्सा मुद्दा है, बल्कि इससे सार्वजनिक प्रभावित भी हो रहे हैं। लोग अपने स्वास्थ्य पर संदेह और आतंक महसूस कर रहे हैं, जिसका समाधान केवल न्यायिक प्रक्रिया से ही नहीं हो सकता।

इस मामले में न्यायिक तंत्र की सख्ताई और संविधान के दिशानिर्देशों का पालन होना चाहिए, ताकि सार्वजनिक आतंक और भ्रम का समापन हो सके। आशा है कि आगामी सुनवाई में मामला स्पष्टि प्राप्त करेगा और न्यायिक दृष्टिकोण से यह केस निपटारा जाएगा।

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