संयम के महासूर्य :अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण
नई दिल्ली: सम्पूर्ण जीवन आत्म कल्याण, जन कल्याण , राष्ट्र कल्याण और विश्व कल्याण को समर्पित करने वाले मानवता के मसीहा सिद्धयोगी आचार्य श्री महाश्रमण जी ऐसे विलक्षण साधक हैं जो विगत 50 वर्षो से भारतीय ऋषि परम्परा को पुष्ट करते हुए निरन्तर साधना के शिखरों का आरोहण कर रहे हैं।आपका सम्पूर्ण जीवन सार्वजनिक है।आप लाखों श्रद्धालुओं को प्रति दिन प्रवचन से प्रतिबोध देते हैं, हजारों को अपने करकमलो से आशीर्वाद प्रदान करते हैं,सैकड़ों श्रद्धालुओं को मंगल पाठ सुनाते हैं।प्रात: 4 बजे से रात 10 बजे तक आत्मोत्थान व समाजोत्थान को समर्पित आपका साधनामय जीवन जनोद्धार की नजीर बनगया है।
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मूर्मू जी स्वयं मानवता के प्रति आप द्वारा किये जा रहे कठोर परिश्रम का विशेष उल्लेख करते हुए नमन करती हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अभिवंदना के स्वरों में कहा है कि आचार्य महाश्रमण आदर्श योगी के साथ राष्ट्र की एकता व सद्भावना के लिए महान कार्य कर रहे हैं।
वास्तव में युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने युग को नई दिशा और नई दृष्टि प्रदान की है।
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी अणुव्रत आंदोलन को अपना आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान कर रहे है ।आपके विशिष्ट प्रवचन प्रत्येक अणुव्रती कार्यकर्ता को संयम पर आधारित अणुव्रत जीवनशैली अपनाने और अणुव्रत के विशिष्ट कार्यों के संपादन का आह्वान करते हैं ।अणुव्रत अमृत महोत्सव वर्ष पर अणुव्रत यात्रा द्वारा आपने असीम जनकल्याण कर अपूर्व इतिहास रचा,
आपकी प्रेरणा से 1 करोड से ज्यादा लोगों ने नशा मुक्ति स्वीकारी, लाखों ने जीवन विज्ञान व अणुव्रत प्रतियोगिताओं के माध्यम से संयम व सकारात्मकता को सफलता सूत्र माना है।।हजारों ने डीजीटल डिटोक्स समझकर स्क्रिन , मोबायल व मीडिया का संयम तथा अन्य अणुव्रत संकल्पों को जीवन में स्वीकार कर स्वयं को सुखी बनाया है।
महान समाज सुधारक ,संयम के शिखर , ऋषि परम्परा के संवाहक ,युगप्रधान आचार्य महाश्रमण जी जैन तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता हैं।
श्रमण संस्कृति के गौरव,महातपस्वी की यशस्वी जीवन यात्रा का शुभारंभ बैशाख शुक्ला नवमी वि. सं. 2019 (ई.सन्13 मई 1962 )को सरदारशहर की पुण्य धरा पर पिता झूमरमल दुगड के यहाँ माता नेमा देवी ने के यंहा हुआ।
होनहार बालक ने मुनि श्री सुमेरमलजी “लाडनूं” द्वारा बैशाख शुक्ला चतुर्दशी वि. सं. 2031 (ई.स. 5 मई 1974 ) सरदार शहर में साधु दीक्षा ग्रहण कर ली
योग की स्थिरता ,कष्ट सहिष्णुता और गहरे ज्ञान की अभिरूचि नव दीक्षित मुनि बने मुदित में परिलक्षित होने लगी।
जागरूकता की मूर्त प्रेरणा और संयम की निरंतर साधना से विकास करते हुए 13 मई 1981 को अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी के निजी कार्य में तथा 16 फ़रवरी 1986 को युवाचार्य महाप्रज्ञ के अंतरंग सहयोगी नियुक्त हुए ।परम पारखी आचार्य तुलसी ने 9 सितंबर 1989 को “महाश्रमण”पद एवं आचार्य महाप्रज्ञ ने 14 सितम्बर 1997 को “युवाचार्य” पद प्रदान किया ।आचार निष्ठा अप्रमत्ता के साथ सत्य, साहस , शौर्य आदि सदगुणों के निरंतर विकास से महाश्रमण जी के महातेजस्वी महाप्रभावी व्यक्तित्व का निर्माण हो गया ।
बैशाख कृष्णा एकादशी वि. सं. 2067 ( ई.स. 9 मई 2010 ) को
आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का अकस्मात महाप्रयाण के
पश्चात तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता के रूप में बैसाख शुक्ल दशमी वि.सं. 2067 ( ई.स. 23 मई 2010 ) को प्रथम अभिभाषण से ही आपकी प्रभावशाली प्रशासनिक क्षमताएं क्षमताएं, दूरदर्शी बेजोड़ निर्णय कला मुखरित हो उठी। संयम संवर्धन के सामयिक परिवर्तन से संघ में सकारात्मक प्रभाव परिलक्षित होने लगे ।
भारत के स्वर्णिम वर्तमान आचार्य महाश्रमण संगठन के महासमन्वयक, श्रेष्ठताओं के समवाय ,ऊर्जा व कर्मजा शक्ति के पुँज है ।जो एक एक व्यक्ति,परिवार गाँव , शहर ,महानगर व तेरापंथ धर्मसंघ व वैश्विक जन की सार संभाल करने का श्रम साध्य कार्य अनवरत करते रहते हैं ।
आचार्य प्रवर ऐसे सामयिक आदर्श शिक्षक है जो वर्तमान हिन्दुस्तान को नई दिशा प्रदान करते हैं । आप द्वारा संचालित चारित्र आत्माओं के शिक्षण प्रशिक्षण की नियमित कक्षाएं इसका अद्भुत प्रयोग है ।
आप उच्च कोटि के साहित्यकार हैं जिनकी लेखनी पाठकों के दिलोदिमाग़ से सीधा तारतम्य जोड़ देती है और फिर आपकी क़लम से निःसृत संयम की धारा से समाज के सात्विक परिवर्तन घटित होते हैं ।
महिला उत्थान के उद्गाता आचार्य प्रवर महिला शक्ति संवर्द्धन हेतु अनेक सुअवसर प्रदान कराते हैं ।उनके विशेष आशीर्वाद से ही हम जैसी महिलाओं को संघ समाज व देश सेवा के सुअवसर प्राप्त होते हैं
जिनशासन के आत्मदृष्टा विशिष्ट नायक विश्व के श्रेष्ठ मार्गदर्शक हैं ,जो समस्त मानवता को संयम का सुरक्षा कवच प्रदान कर विश्व शान्ति में सहयोगी बनते हैं ।
आपकी सूक्ष्म मनीषा व अंतःस्पर्शी वक्तृत्व कला अनूठी है। इससे प्रभावित होकर हज़ारों व्यक्ति असंयम का प्रत्याख्यान करके जीवन सुधारते हैं और स्वर्णिम भविष्य का सृजन करते हैं
शक्ति स्रोत आचार्य महाश्रमण जी आधुनिक युग के महान भागीरथ हैं।नैतिकता नशामुक्ति और सद्भावना की अणुव्रत गंगा से आम अवाम को अभिस्नात करते हुए आत्मकल्याण हेतु प्रेरित करके अपूर्व जन कल्याणकारी कार्य कर रहे है ।
विश्वशान्ति के अग्रदूत युगद्रष्टा, युगस्रष्टा युगनायक युगप्रधान आचार्य श्री के महाश्रमण जी के 63 वें जन्मोत्सव , 15 वें पदाभिषेक दिवस एवं 51 वें स्वर्णिम दीक्षा दिवस पर शत शत अभिवंदन करते हैं ,शुभकामनाएं करते हैं कि आप जैसे महामना युगों युगों तक मानवता की सेवार्थ ,स्वपर कल्याण हितार्थ, संघ श्री वृद्धि के शलाका पुरूष रहें , समस्त चराचर जगत आपसे युगबोध पाता रहे।
पुनश्चः आचार्य श्री महाश्रमण के दीक्षा के 50 वर्ष परिसम्पन्नता के विशेष अवसर पर कोटि-कोटि वंदन -अभिवंदन
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