जिन्हें सबने मना कर दिया, उन्हें ज़िंदगी मिली यहां: अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में तीन महिलाओं की जान बची

~ किसी का दिल चार गुना बड़ा था, कोई इतनी कमज़ोर थी कि ऑपरेशन मुमकिन नहीं था, लेकिन डॉक्टर्स ने नहीं मानी हार
~ आयुष्मान भारत योजना और विशेषज्ञों की मेहनत बनीं जीवनदायिनी

मई 2025 — जब ज़िंदगी की सारी उम्मीदें टूट जाएं, तब कहीं एक दरवाज़ा खुलता है। ऐसा ही हुआ अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में, जहां तीन गंभीर दिल की मरीज महिलाओं को वह इलाज मिला, जो देश के कई बड़े अस्पतालों ने देने से मना कर दिया था।

इनमें थीं — 60 वर्षीय संतोष यादव, 61 वर्षीय रूफिया परवीन खान, और 28 वर्षीय इंदु कुमारी, जो झारखंड के एक दूरदराज़ आदिवासी गांव से आई थीं। तीनों की स्थिति इतनी नाज़ुक थी कि उन्हें ‘इनऑपरेबल’ यानी इलाज के लायक नहीं बताया गया था। लेकिन अमृता हॉस्पिटल की टीम ने इनका केस दोबारा समझा, रिस्क उठाया, और आज ये तीनों महिलाएं स्वस्थ होकर नई ज़िंदगी जी रही हैं।

इंदु कुमारी: चार गुना बड़ा दिल, लेकिन मिला नया जीवन

इंदु कुमारी, जो एक आदिवासी क्षेत्र से आती हैं, आर्थिक रूप से इतनी कमजोर थीं कि पांच साल पहले उनकी सर्जरी तक नहीं हो पाई। उनकी हालत बिगड़ती गई, और जब वो अमृता हॉस्पिटल पहुंचीं, उनका दिल चार गुना बड़ा हो चुका था। उन्हें सांस लेने में दिक्कत, तेज़ धड़कन और दिल की गंभीर समस्या थी।

डॉक्टरों ने उन्हें तुरंत भर्ती कर आयुष्मान भारत योजना के तहत मुफ्त इलाज शुरू किया। उनका ऑपरेशन बहुत जटिल था, लेकिन डॉक्टरों ने हार नहीं मानी। चूंकि इंदु ऐसी जगह से आती हैं जहां खून पतला करने वाली दवाओं की नियमित जांच संभव नहीं, इसलिए उनके लिए एक विशेष टिशू वॉल्व लगाया गया। आज वे रिकवरी पर हैं और अपने पैरों पर चल पा रही हैं।

संतोष और रूफिया: जब सबने कहानहीं’, यहां मिलाहां

संतोष यादव और रूफिया परवीन को दिल्ली के तीन नामी अस्पतालों ने यह कहकर लौटा दिया कि वे सर्जरी के लिए फिट नहीं हैं। दोनों के दिल में डबल वॉल्व की समस्या थी और शरीर बहुत कमजोर हो गया था। लेकिन अमृता हॉस्पिटल में इनके केस को फिर से जांचा गया, और ऑपरेशन सफल रहा।

संतोष ने कहा, तीन जगह से मना हो गया था। लगा सब कुछ खत्म हो गया। लेकिन यहां आकर डॉक्टरों ने मेरे केस को गंभीरता से लिया, उम्मीद दी और ज़िंदगी दी।

रूफिया बोलीं, मैं तो सोच चुकी थी कि अब कुछ नहीं हो सकता। लेकिन अमृता हॉस्पिटल ने वो किया, जो और कोई नहीं कर सका।

डॉ. समीर भाटे, हेडकार्डियक सर्जरी, ने कहा: इन तीनों मरीजोंइंदु, संतोष और रूफियाकी कहानियाँ अलग थीं, लेकिन एक बात समान थी: सबको कहीं कहीं से मना कर दिया गया था। इंदु का दिल चार गुना बड़ा हो चुका था, संतोष और रूफिया की हालत को देख दूसरे अस्पतालों ने सर्जरी से इनकार कर दिया था। हमने सिर्फ जांच रिपोर्ट नहीं देखीं, हमने उनके हौसले, उनके परिवार की उम्मीदें और हमारी ज़िम्मेदारी को देखा। हमें लगा अगर अब नहीं किया, तो शायद कभी नहीं कर पाएंगे। यही सोचकर हमने जोखिम उठायाक्योंकि कई बार किताबों से ज़्यादा इंसानियत की बात सुननी पड़ती है।

महिलाओं में दिल की बीमारी को नज़रअंदाज़ करना घातक

भारत में दिल की बीमारी अब महिलाओं के लिए भी बड़ा खतरा बन चुकी है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज स्टडी के मुताबिक, देश में हर साल 18% महिलाओं की मौत दिल की बीमारियों से होती है। फिर भी समय पर जांच और इलाज नहीं हो पाता—कई बार तो इन्हें ऑपरेशन के लायक ही नहीं समझा जाता।

अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद इस सोच को बदल रहा है। यहां रिपोर्ट्स से ज़्यादा मरीज़ को समझा जाता है, और रिस्क उठाकर भी जान बचाने की कोशिश की जाती है।

Share This Post

One thought on “जिन्हें सबने मना कर दिया, उन्हें ज़िंदगी मिली यहां: अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में तीन महिलाओं की जान बची

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *